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भारत बलिदानों की धरती है. महर्षि दधिची से लेकर महात्मा गांधी और लाल बहादुर शाश्त्री से भाई राजीव दीक्षित तक सभी ने अपने बलिदान दिए है. बलिदान देश के लिए, समाज के लिए, स्वतंत्र विचारों के लिए. मगर कभी कभी ये बलिदान य़ू ही vyarth चलें जाते हैं. जय जवान जय किसान का नारा बुलन्द करने वाले लाल बहादुर ने पकिस्तान के दुस्साहस का सही जवाब दिया और सेना पकिस्तान के आँगन तक पहुच गयी. ताशकंद में रहस्मयी नीद की आगोश में लाल बहादुर कैसे चले गए कोई नहीं जानता है और न तो सरकार ने जानने की कोई सार्थक कोशिश की. हम आज bhee पकिस्तान के साथ उसी रास्ते पे खड़े है जहां से चले थे. अब समय आ गया है की हम इन बलिदानों को यूँ ही न जाने दें. भारत में स्वाभीमान की अलख जगाने वाले भाई राजीव की अचानक मौत भी एक बलिदान ही है. इन दोनों बलिदानों की ख़ास बात ये रही की सरकार ने किसी का भी पोस्टमार्टम नहीं कराया. समय आ गया है की हम अब अपने अधिकारों को जाने समझे और सजग रहें. समय आ गया है की हम इन बलिदानों से प्रेरणा लें और लग जाएँ एक अच्छे भारत के निर्माण में. ऐसा नहीं की हम नहीं कर सकते – बस विश्वास होना चाहिए की haan हम कर सकते हैं. हमसे पहले भी लोगों ने किया है. इस देश को सजाया है, बनाया है. हम भी बनायेंगे, सजायेंगे और लूट खसूट और भ्रसटाचार से अपने देश को दूर रखेंगें. किसी ने यूँ ही नहीं कहा है “कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरें जहां हमारा”
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